धनतेरस

धनतेरस पाँच दिवसीय दीपोत्सव का प्रारंभिक दिन होता है। यह कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री धनवंतरी की पूजा की जाती है। इसके पीछे प्रचलित एक लोक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान श्री धनवंतरी जो कि देवताओँ के वैद्य माने जाते है, अमृत कलश लेकर देवताओँ और दानवोँ के समक्ष उपस्थित हुए थे। वह धनतेरस का ही दिन था। इसलिए इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है।

*क्रियाएं -
पुरानी मान्यताओँ के अनुसार इस दिन सोने-चाँदी की वस्तुओँ की खरीददारी करने से मनुष्य का भाग्योदय होता है। इस दिन खरीदी गई वस्तुओँ की दिवाली की रात्रि को पूजा की जाती है। इस दिन ही दिपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदी जाती है।

*धनतेरस कथा -

पुरानी लोककथा के अनुसार किसी समय हेम नामक एक राजा थे। दैव कृपा से उन्हेँ पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिशियोँ ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि जिस दिन बालक का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा इस बात को जानकर अत्यंत दुःखी हुए। उन्होने राजकुमार को किसी ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ उस पर किसी स्त्री की परछाई तक न पड़े। संयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनोँ एक-दूसरे को देख मोहित हो गए और दोनोँ ने गान्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन पश्चात यमदूत उसके प्राण लेने पहुँचे। जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे उस समय उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका ह्रदय भी द्रवित हो उठा परंतु उन्हेँ अपना कार्य तो करना ही पड़ा। एक यमदूत ने उस समय यमराज से कहा कि क्या कोई ऐसा उपाय नही है जिससे मनुष्य की अकाल मृत्यु न हो। इस प्रकार के अनुरोध से यमराज बोले- हे दूत! कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेँट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीँ रहता। इसी कारण लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते है।