गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी हिन्दुओँ का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार महाराष्ट्र मेँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

कथा

शास्त्र-पुराणोँ मेँ यूं तो भगवान गणेश के जन्म से संबधित अनेक कथाएं प्रचलित है। लेकिन इनमेँ सबसे प्रचलित कथा माता पार्वती द्धारा पुत्र गणेश के प्रादुर्भाव की है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद पार्वती ने स्नान करते समय अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसे सजीव कर दिया। उन्होने उसका नाम गणेश रखा। पार्वती जी ने गणेश से कहा -'हे पुत्र! तुम एक मुद्गर लेकर द्वार पर जाकर पहरा दो। मैँ भीतर स्नान कर रही हूँ। इसलिए यह ध्यान रखना कि जब तक मैँ स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी को भीतर मत आने देना। उधर थोड़ी देर बाद भोगावती मेँ स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस आए और घर के अंदर प्रवेश करना चाहा तो गणेश जी ने उन्हेँ द्वार पर ही रोक दिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उसका सिर, धड़ से अलग करके अंदर चले गए। शिवजी जब अंदर गए तो पार्वती जी ने उन्हेँ नाराज देखकर समझा कि भोजन मे विलम्ब होने के कारण महादेव नाराज है। इसलिए उन्होने तत्काल दो थालियोँ मेँ भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का निवेदन किया। तब दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा- 'यह दूसरी थाली किसके लिए लगाई है? इस पर पार्वती जी ने उन्हेँ पुत्र गणेश के विषय मेँ बताया और कहा कि वह द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शिवजी को आश्चर्य हुआ और उन्होने अपने को रोके जाने के कारण उसका सिर धड़ से अलग कर देने की बात कही। यह सुनकर पार्वती जी दुःखी होकर विलाप करने लगी। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुनः जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईँ। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटित हुई थी। इसलिए यह तिथि 'गणेश चतुर्थी' नामक पुण्य पर्व के रूप मेँ मनाई जाती है।

क्रियाएं

गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, तांबे, मिट्टी या गोबर की गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। गणेश जी की इस प्रतिमा को कोरे कलश मेँ जल भरकर, मुंह पर कोरा कपड़ा बाँधकर स्थापित किया जाता है। फिर गणेश जी की मूर्ति पर सिँदूर चढ़ाकर पूजन करना चाहिए। इसके बाद गणेश जी को दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओँ का भोग लगाने का विधान है।
गणेश जी का पूजन सांयकाल के समय करना चाहिए। पूजन के बाद दृष्टि नीची रखते हुए चन्द्रमा को अर्ध्य देकर ब्राह्यणोँ को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए।