महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि हिन्दुओँ का एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ मेँ इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्या से रूद्र के रूप मे अवतरण हुआ था। बैल को वाहन के रूप मे स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तोँ का मंगल करते है और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैँ।

कथा

महाशिवरात्रि के संबध मेँ जनश्रुति या कथा है कि एक बार एक शिकारी था। वह निर्धनता तथा क्षुधा से व्याकुल होकर जीव हिँसा को अपने गले लगा चुका था। शिकारी को दैवयोग से महाशिवरात्रि के दिन खाने को कुछ नहीँ मिला तथा सांयकालीन वेला मेँ सरोवर के निकट बिल्वपत्र के वृक्ष पर चढ़कर अपने शिकार की लालसा से रात्रि के चार पहर अर्थात् सुबह तक बिल्वपत्र को तोड़कर अनजाने मेँ नीचे गिराता रहा जो शिवलिँग पर चढ़ते गए। जिससे उसका हिँसक ह्रदय पवित्र हुआ और प्रत्येक पहर मे हाथ आए मृग परिवार को उनके वादे के अनुसार छोड़ता रहा। किन्तु किए गए वादे के अनुसार मृग परिवार शिकारी के सामने प्रस्तुत हुआ। अब उसका हिँसक ह्रदय निर्मल हो चुका था। इसलिए शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को छोड़ दिया। इसके बाद शिकारी व मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

क्रियाएँ

इस दिन शिवभक्त, शिव मंदिरोँ मेँ जाकर शिवलिँग पर बिल्वपत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते है। इस दिन मिट्टी के बर्तन मेँ पानी भरकर, ऊपर से बिल्वपत्र, आक, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिँग पर चढ़ाया जाता है।